Saturday, June 18, 2016

रास्तों से दोस्ती....

दोस्त ने पूछा कि रोज उसी रास्ते से घर जाने से बोर नही होते? कभी रास्ते भी बदल लिया करो..... तब तो ये बात हँसी में टाल दी, पर बाद में, इसके बारे में सोचता रहा कि पुरानी राहों से दोस्ती क्यूँ हो जाती है ? ये रास्ते कौनसा से हमसे हमारा हाल चाल पूछते है और कौन सा ये हमें ठोकर लगने से बचा लेते है? पर क्या सही में पुराने रास्ते या गलियां हमारे दिल में कुछ खास नही बन जाते? जाने-अनजाने में हमारी दोस्ती उन रास्तों की हर एक चीज़ से हो जाती है, जो उस रोज़ाना के रास्ते में हमसे मिलती है| सामने वाले घर की बेरंग हो चुकी, वो दीवार उस घर के भीतर के हाल भी बता देती है| अगर वो सब्जी वाला देर रात तक भी वही मोड़ पे खड़ा है, तो पता चल जाता है, कि उसकी सब्जी अभी बिकी नही है और वो अभी भी इस विश्वास के साथ खड़ा है, कि अपना सारा माल बेच कर जायेगा| मंदिर के सामने की भीड़ से मंगलवार और शनिवार का पता चल जाता है| मंदिर के बाहर अगर वो छोटी लड़की फूल बेचती है, तो बिना उससे पूछे पता चल जाता है कि उसकी माँ फिर से बीमार है और उसने फिर स्कूल से छुट्टी ली है| वो एटीएम के पास का सिक्योरिटी गार्ड रोज दुआ सलाम कर लेता है... रास्ता तो फिर भी बात नही करता पर इन सभी गतिविधियों में ये रास्ता ही है, जो मुझे इन सब पहलुओं से जोड़ता है.....
सबसे बात हो जाती है, इस रास्ते से रोज आने जाने से... अगर रास्ता बदलता हूँ, तो चुप चाप ही घर पहुंचना पड़ेगा......

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