दिन का ढल जाना और रात के दस्तक.... बस ये दो ही वजह नहीं है, सोने की,
दुनिया का दस्तूर भी एक अलग कहानी है... दरअसल, तेरे सपने देखने की चाह
नींद को खींच लाती है| तेरी यादें... चादर सी ढाप लेती है, तेरे एहसासों के
तकिये पे सर रखते ही, आँखें कुबलाने लगती है... गर्मी हो, तो तेर चेहरा,
छत पे यूँ पंखे सा घूमता दिखाई देता है, कि हवा में खुद ब खुद एक ठंडक दौड़
जाती है और अगर सर्दी हो, तो... अह्ह्ह... इस पंखे को बंद कर देता हूँ| एक
बात और, तेरे इन सपनों की.... दुनिया में जाने से पहले सोचता हूँ, कि तुझे
वो बात कह दूंगा, जो हकीक़त में.... तेरे सामने नहीं बोल पाता... पर वो बात
उन ख्वाबों में भी मुझ तक ही रहती है.....
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