लगभग
26 सालों
का ऐसा विवाहित जीवन रहा है
मेरी माँ का, जो
उसने एक सुहागन के रूप में
जिए| 2003 में
पिताजी चल बसे, उन
26 सालों
में 26 बार
मेरी माँ ने इस व्रत को रखा|
करवाचौथ का
ये दिन, जिस
दिन माँ खूब सज धज के पूजा किया
करती थी, फिर
रात को चाँद देखने के बाद खाना
खाया करती थी| बहुत
ही ईमानदारी से पूरा करती थी,
इस व्रत को|
लेकिन,
पिताजी तो चले
ही गए, ये
व्रत उन्हें रोक नहीं पाए|
या ये हो सकता
है, कि
मेरी माँ ने ईमानदारी नहीं
बरती| पर
जहाँ मैं रहता हूँ, वह
तो हर दो घर छोड़ कर एक विधवा
तो मिली जाएँगी| शायद,
उन्होंने भी
कुछ ऐसा किया होगा कि उस व्रत
का पुण उनके पति को नहीं मिल
पाया होगा| दिल्ली
विश्वविद्यालय, जहाँ
कुछ दिनों से मैं रह रहा हूँ,
वहां हर दूसरी
महिला एक ऐसी सोच रखती है,
जो महिलाओं
के अधिकारों के लिए लड़ मर सकती
है | उठते-बैठते
वो देश को बदलने की बात करती
है| परन्तु
इस व्रत के प्रति उनकी भी उतनी
ही श्रधा है, जितनी
उस औरत की जो रोज तो अपने पति
से पिटती है, उसकी
गालियाँ सुनती है, पर
अपने पति की लम्बी उम्र के लिए
इस व्रत को जरुर रखती है|
कल मार खायी
थी, और
आज कुछ भी ना खाएगी, क्यूंकि
उस मारने वाले को जिन्दा रखना
है| बॉलीवुड
बड़ा ही मददगार है, इस
दिन को लोगों की ज़िन्दगी में
अहम् बनाने में| बाजारों
में दिवाली जैसी धूम मची है,
कुछ औरतें
मेहंदी लगवा रही थी, कुछ
लगा थी, दोनों
ही भूखी है, व्रती
है|
मनीष