Sunday, December 27, 2015

चाय वाला...


क्या बाबूजी चाय पियेंगे ?
लीजिए... पीजिए... मन
मन खुश हो जायेगा आपका...
क्यों भई क्या ऐसा इस चाय
में? साथ में बैठे एक आदमी
ने यूँ ही पूछ लिया... साहब...
इस प्याली में बस चाय नहीं है,
हैरान ? सुनो, इस प्याली में
मेरा आने वाला कल है,
और मेरा बिता कल और आज,
वहां, चाय की छलनी में अटका
पड़ा हैं, अभी थोड़ी देर में, कूड़े
के डब्बे में होगा... अदरक और
इलयाची नहीं, अपनी किस्मत को
कुटा है, मैंने इसमें... और बताओ,
मिठास कैसी है ? मस्त ना...
मेरा सुकून, ख्वाहिश, सपने, जो
बहुत मीठे हुआ करते थे, सब डाल
दिए है इस प्याली में... मैं रोया और
बहुत जला, जब जाके इस चाय को,
गर्माहट मिली है... इसका रंग देखिए...
मेरा रंग को फीका करता है, साहब,
आपको चाय मिली, मालिक को
पांच या सात रूपया... और मुझे?
मुझे फिर से ये खाली प्याली, जिसे
धो के और भर के दुसरे ग्राहक को देना है...
अरे! क्या हुआ? चाय ठंडी हो गई,
बात-बातों में, लायिए फिर से गर्म,
किये देता हूँ....
मनीष

Thursday, December 3, 2015

आज नहाने की जिद ना करो....


उसे छूने, उसके पास जाने से डर लगता है,
गोली मार दो, पर नहाने की मत कहो,
ना जाने क्यों नहाने से डर लगता है,
बाल्टी-डब्बा उठाने से डर लगता है,
बाथरूम की कुण्डी लगाने से डर लगता है,
पानी के साथ, दो मिनट बिताने से डर लगता है,
क्या करू, दुविधा में हूँ,
आपको सच बताने में डर लगता है,
इस बैन सरकार से कहो, की नहाना भी बैन करे,
बेवजह सी लगती नहाने की वजह, अब तो
पानी को पानी बुलाने से डर लगता है...
मनीष