Tuesday, June 23, 2015

सब कुछ देखा.... हमने

फूलों को रोते देखा,
आंसुओं को हँसते देखा,
लोगों की कब्रों पर, हमने,
लोगों को बसते देखा |
अपने पराये देखे,
कोसती, दुआएं देखी,
अपने बच्चों के खातिर,
बिकती, माएं देखी |
चोरों, को फलते देखा,
सच्चों को लुटते देखा,
जीने, के सपने का,
दम घुटते देखा |
सब कुछ देखा.... हमने
मनीष

Thursday, June 11, 2015

इंसानियत की कीमत....

बेची जब सस्ते में इंसानियत,
खरीदार सौ में से चार निकले...
आगे निकले तो तुम निकले,
हम तो यार बेकार निकले...
हम रो देते थे, तेरे गम से,
तुमने तो मेरे आँसू ही बेच डाले,
और हमे इल्म भी ना था, कि कब
तुम उन्हें लेकर बाज़ार निकले...
बेची जब सस्ते में इंसानियत,
खरीदार सौ में से चार निकले...
मनीष




Wednesday, June 10, 2015

हक़ीकत तेरी....

हकीक़त तेरी ये हकीक़त नहीं,
ये जानकर परेशान हूँ....

काली सी, पीली सी,
बेरंग.... रंगीली सी... जिंदगी,
चुप-चाप सी, चिल्लाती,
बेसुर.... सुरीली सी... जिंदगी,
साफ़ सी,.... धुंधली सी,
दूर हो कर, आ मिली... जिंदगी,
मेरी होकर.... किसी और की,
मैंने खो कर, पा ली... जिंदगी....

झूठ बोला नहीं, सच बताया नहीं,
इस पहेली से हैरान हूँ,

हकीक़त तेरी ये हकीक़त नहीं,
ये जानकर परेशान हूँ....
मनीष



Saturday, June 6, 2015

मूतने का चस्का

पसीने से तेल बना के, चमड़ी की बाती कर ली,
और जला के खुद को हमने जिंदगी बसर कर ली.....
किवाड़े, खिड़कियाँ, और दीवारे नहीं है,
सब खुला पड़ा है, कोई चौकीदारें नहीं है...
यूँ बेखबर से, कुछ ढूँढने मत आया करो,
मेरा परिवार सोता है, इस फूटपाथ पर....
तुम यहाँ बार-बार मूतने मत आया करो|
ये बिछी टाईले ही कमरे है हमारे,
इन्ही पर खा कर, चुप चाप सो जाते है...
थके होते है, दिन भर की दिहाड़ी से,
हमें बेवजह जगाने मत आया करो...
मेरा परिवार सोता है, इस फूटपाथ पर....
तुम यहाँ बार-बार मूतने मत आया करो|
थोड़ी ही सही, तुम से कम ही सही,
इज्जत हम भी रखते है, तुम्हारे इस  समाज में,
बेटियां हमारी मासूम है, मायूस है,
पर मजबूर नहीं.......
तुम इनके फट्टे चीथड़ो से झाँकने मत आया करो,
मेरा परिवार सोता है, इस फूटपाथ पर....
तुम यहाँ बार-बार मूतने मत आया करो|
जिस तरफ की हवा चली, उस ओर बह जाते है,
तुम्हारे हर जुर्म को यूँ ही सह जाते है,
जलाने का रिवाज़ हमारे यहाँ भी है,
मगर मरने  के बाद....
तुम हमें जिन्दा जलाने मत आया करो.
मेरा परिवार सोता है, इस फूटपाथ पर....
तुम यहाँ बार-बार मूतने मत आया करो|
मनीष