Monday, June 20, 2016

बारिश.....

बारिश.... हो रही है...
तो...
तो क्या ? हर चीज़ में 'तो' या 'क्यों' घुसाना... जरुरी नहीं है...
हाँ... पर ये बारिश कुछ अलग नही है ?
हाँ... अलग तो है, 20 जुलाई 2016 के दिन के पौने दो बजे की बारिश है ना? अलग होगी ही.... वो कहते है ना कि आप एक नदी में दो बार पैर नही रख सकते... क्योंकि अगली जो धारा आएगी, वो अलग होगी, वैसे ही ये बारिश भी अपने आप में खास है... समझे ?
हाँ... समझ गया...
क्या समझे ?
यही... कि हर बारिश में गरमा गर्म पकौड़े... मिले खाने को.... ये जरुरी नहीं...
हाँ... बिलकुल सही समझे....
वैसे तुम्हें... पकौड़ो की कमी के कारण ये बारिश अलग लग रही है ?
तुम्हें समझाना मेरे बस की बात नहीं है, ना इस बारिश की ऐसी औकात है, जो तुम्हें समझा सके.... और बेचारे पकौड़े, तो कुछ समझाने से पहले ही ख़त्म हो जाते है... तुम्ही कहती हो, कि कुछ चीजों को चुप रह कर समझना पड़ता है.... ये बारिश भी वैसी ही है.... इसीलिए आज कोई बहस नही...
मतलब समझा नही सकते ?
समझा नहीं सकता... बस यही कह सकता हूँ कि आपको हर बारिश भीगो दे.... ये जरुरी नहीं......

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