Sunday, July 19, 2015

लेकिन क्यूँ ????

कुछ तुम चले,  कुछ हम चले,
पर न मिटे फ़ासले...
ना तुम रुके, ना हम रुके,
पर रुक गए सिलसिले....
ख्वाहिश थी, मिलने कि
पर मिल ना सके...
ज़िन्दगी भर का सपना ?
पर दो कदम चल ना सके...
रास्तें है, अलग और
अलग मंजिलें....
कुछ तुम चले,  कुछ हम चले,
पर न मिटे फ़ासले...
मनीष

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